मेरे आँगन के मुंडेर पर
फुदक -फुदककर नाचती
चूँ चूँ करती हैं गौरैया
एक मुट्ठी चावल के दाने
बिखेर देते जब आँगन में
तब वो ललचाती और
चुग चुगकर खाती
उड़ती इठलाती कभी
इस मुंडेर से उस मुंडेर
अपने पंखों को फैलाती
मधुर गीत सुनाती
चूँ चूँ चूँ चूँ चूं
कानों में मधुर संगीत
मिश्री सी घुल जाती।
मेरी उदासी ना जाने
कहाँ फ़ुर्र हो जाती
हे गौरैया रानी
फिर से तुम मेरे
आँगन में आकर
मधुर गीत संगीत
सुनाओ जा ना ।
Poet : प्रेमलता सिंह, पटना ,बिहार