बहुत दिनों के बाद
आज, गौरैया
तुम आंगन आईं।
नहीं चमकती
आँखों में अब
अल्हड़पन का
भाव दिखा
सहमे-सहमे
पंख तुम्हारे
डर-डर कर
पंजा रखा ,
कहांँ-कहांँ
तुम छुपी रहीं
कितने-कितने
संकट पायीं।
कभी प्रदूषित
हवा ने मारा ,
कभी बाज ने
पंजा डाला,
मानव मन की
चाहों ने
दे दिया तुम्हें है
देश निकाला।
आज मनुज के
स्वार्थ- यज्ञ में,
तुम आहूतियांँ
डाल आईं।
खुली हवा ,
फुदका करती थीं
चहक-चहक कर
घर भरती थीं।
चुन्नू मुन्नू
पीछे भागें
उन्हें चिढ़ा कर
तुम उड़ती थीं
लौटा दे कोई
दिवस पुराने
नैनों ने बूंँदें
छलकाईं।
दाने बिखरे
पड़े हुए हैं ,
सूरज ने पानी,
पी डाला,
देख देख सूने कोने
चंदा ने अश्रुपात
कर डाला
देख तुम्हारी
दीन दशा
मन में, करुणा
की बदली छाई।
बहुत दिनों के बाद
आज ,गौरैया
तुम आंँगन आईं।
Poet : डॉ मंजुलता