तुम्हारे मौन इशारों में
तुम्हारी व्यथा समझना मुश्किल है
मगर, तुम आना आँगन मेरी ‘गौरैया’
तुम बिन रहता मन मेरा बेकल है।
पहले जब तुम आती थी,
घर के मुँडेर पर थिरक-थिरक कर गाती थी
खाती थी दाने फुदक-फुदक कर
कभी बिन खाये ही उड़ जाती थी
लगता था जैसे तुमसे ही घर में खुशियां है
माँ तकती थी ऐसे रस्ता तेरा
जैसे तू ही उसकी मुनिया है
पर, जाने कहाँ अब तुम जा बसी
जाने कहाँ तुम्हारा डेरा है
न कभी तू आती है
न कहीं तू मिलती है
जाने किसका तुमपर पहरा है
हो जहाँ भी तुम ओ मेरी गौरैया
आ जाओ। घर-आँगन सब उदास हैतुम बिन मेरी गौरैया।
Poet : हेमु